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बोल हल्के हल्के बोल हल्के हल्के
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धागे तोड़ लाओ चांदनी से नूर के घूँघट ही बना लो रोशनी से नूर के शर्म आ गई तो आग़ोश में लो साँसों से उलझी रहें मेरी साँसे बोल ना हल्के हल्के, बोल ना हल्के हल्के होंठ से हल्के हल्के, बोल ना हल्के आ नींद का सौदा करें, इक ख़्वाब दे इक ख़्वाब ले इक ख़्वाब तो आँखों में है, इक चाँद के तकिए तले कितने दिनों से ये आसमां भी सोया नहीं है, इसको सुला दे उम्रे लगीं कहते हुए, दो लफ़्ज़ थे इक बात थी वो इक दिन सौ साल का, सौ साल की वो रात थी कैसा लगे जो चुप चाप दोनों हो पल पल में पूरी सदियाँ बिता दे गीतकार : गुलज़ार, गायक : राहत फ़तेह अली खान - महालक्ष्मी अय्यर, संगीतकार : शंकर-एहसान-लॉय, चित्रपट : झूम बराबर झूम
हड़प्पा सभ्यता: खोज, मुहरें, इतिहास और प्रमुख स्थल
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सिंधु घाटी सभ्यता , जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, अपनी ग्रिड प्रणाली पर आधारित सुव्यवस्थित योजना के लिए जानी जाती है। यह एक कांस्य युग की सभ्यता थी, जो वर्तमान के उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत तक विस्तारित थी। इस सभ्यता ने सिंधु और घग्गर-हकरा नदी की घाटियों में विकास किया और यहाँ पर कई महत्वपूर्ण नगरों का निर्माण हुआ। इसके अद्वितीय शहरी नियोजन और जल प्रबंधन प्रणाली ने इसे प्राचीन सभ्यताओं में एक विशेष स्थान दिलाया। हड़प्पा सभ्यता , जिस सभ्यता में अबतक के मिले शहर तथा वहां के ढांचे ने विशेषज्ञों को आश्चर्यचकित किया है। पिछले कुछ समय में, कुछ विशेषज्ञों ने ये भी अनुमान लगाया की हड़प्पा सभ्यता, मेसोपोटामिया सभ्यता से भी पुरानी है और विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है। ऐसे में आपको “हड़प्पा सभ्यता इतिहास क्या है” के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। इस ब्लॉग में आप हड़प्पा सभ्यता इतिहास क्या है, हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने की, हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल, हड़प्पा सभ्यता की मुहरें, इसकी विशेषता, प्रमुख स्थल और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी अन्य महत...
हड़प्पा सभ्यता की खोज
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हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की थी। उन्होंने पाकिस्तान के आधुनिक पंजाब प्रांत में हड़प्पा स्थल पर खुदाई का कार्य शुरू किया। बाद में, 1922 में रखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई की। इन खोजों से प्राप्त कलाकृतियों में समानता देखकर, तत्कालीन पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल ने 1924 में 'सिंधु घाटी सभ्यता' की खोज की घोषणा की।
मां तेरी याद आती है। मां पर कविता
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कैसे कहूं की मां की याद नहीं आती । मुझे तो मां की याद हर रोज आती है सुबह उठते हुए, खाना ना खाने पर 10 बार चिल्लाते हए, कुछ गलतीहुई तो वो पिटाई और फिर खुद ही रोना , नींद ना आने पर वो लोरी, सुबह की चाय, कहीं जाना हो तो मुझे परी की तरह सजाते हुए, मेरे हर एक सुख दुख का ख्याल रखते हुए। (कविता) मां तेरी याद आती हैं । थक्कर घर जाओ तो याद उसी की आती है चोट लगे कभी मुझे जो , तो जुबान पर नाम उसी की आती है । डर लगे कभी मुझे तो वह बातें याद आती है । नींद ना आए कभी मुझे तो वो गोद याद आती है। मां तेरी याद आती है। सरस्वती पासवान
मोटू पतलू कौन है ? Who is Motu Patlu?
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मोटू पतलू दो दोस्त है और फुरफुरी नगर में रहते हैं इनकी दोस्ती काफी गहरी है यह अपनी दोस्ती हमेशा निभाते हैं। मोटू - कद छोटा और मोटे होने के कारण इसका नाम मोटू है। यह समोसा खाने में विख्यात हैं। और इसकी उम्र 30 से 40 के बीच है। पतलू- दुबले पतले होने के कारण इसका नाम पतलू है। यह काफी पढ़ा लिखा आदमी है और यह बुद्धिमान के लिए प्रसिद्ध है । इसकी उम्र भी 30 40 के बीच में है। Motu Patlu are two friends who live in Furfuri Nagar. Their friendship is very deep and they always maintain it. Motu – He is nicknamed Motu because of his short stature and stout stature. He is famous for eating samosas. He is between 30 and 40 years old. Patlu - He is named Patlu because of his thin build. He is a well-educated man and is known for his intelligence. He is in his 30s and 40s.
हल्दीघाटी युद्ध की जानकारी। हल्दीघाटी युद्ध कब हुआ था? और हल्दीघाटी युद्ध किसके बीच हुआ था।
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1576 ईस्वी में महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच घमासान युद्ध हुआ था जिसे हम हल्दीघाटी के नाम से जानते हैं। यह राजस्थान में है यहां की मिट्टी पीले होने के कारण इसे हल्दीघाटी के नाम से जाना जाता है हल्दीघाटी के बारे में मुख्य बातें: भौगोलिक स्थिति: यह राजस्थान में अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों में खमनोर और बलीचा गांवों के बीच स्थित एक दर्रा है, जो राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है। नाम का कारण: इसका नामकरण यहां की हल्दी जैसी पीली मिट्टी के कारण हुआ है। हल्दीघाटी का युद्ध: यह युद्ध 18 जून, 1576 को अकबर की मुगल सेना और महाराणा प्रताप की राजपूत सेना के बीच लड़ा गया था। मुगल सेना का नेतृत्व राजा मान सिंह प्रथम कर रहे थे। इस युद्ध को आज भी भारतीय इतिहास में वीरता और शौर्य का प्रतीक माना जाता है, हालांकि परिणाम किसी भी पक्ष के लिए निर्णायक नहीं रहा। युद्ध में महाराणा प्रताप के वीर योद्धाओं और उनके घोड़े चेतक ने भी अतुलनीय योगदान दिया। अन्य आकर्षण: यहां महाराणा प्रताप स्मारक और चेतक स्मारक भी हैं, जो इतिहास प्रेमियों के लिए एक महत्...